Jeetendra Gaur
ग्वालियर. एक जमाने में चंबल में आतंक का पर्याय बने पूर्व डकैत मोहरसिंह को सजा सुनाने वाले पूर्व न्यायाधीश दत्तात्रय पुंडलिक का रविवार को निधन हो गया। मोहरसिंह को दतिया जिले में अपहरण के लिए 2006 में 5 साल के लिए जेल भेजा गया था जहां से वह 2012 में छूटा। जेल से छूटते ही मोहरसिंह ने अपनी पत्नी और बेटी की हत्या कर लाश सिंध नदी में फेंक दी थी।
बीहड़ में 16 साल रहे डाकू मोहर सिंह पर पांच सौ पचास मुकदमे थे, जिनमें चार सौ हत्याओं का आरोप था। जेल में 8 साल सजा काट चुके पूर्व दस्यु मोहर सिंह ने धरती बचाने, हरियाली लाने की भी ठानी थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि, "मुझे इस बात के लिए कोई पछतावा नहीं कि मैंने बीहड़ों में बंदूकें गरजाई हैं और लोगों की हत्याएं की हैं।" फिलहाल डाकू मोहर सिंह अपने गांव में खेती करते हैं और बाकी समय मंदिर में भजन कीर्तन करते हैं। गांव में जहां भी भगवत भजन होता है वहां मोहर सिंह जरूर दिखाई दिखाई देते हैं।
पत्नी और बेटी का काटा था सिर
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दतिया में दो अपहृतों की हत्या करने वाले डकैत मोहर सिंह ने अपनी पत्नी और 15 साल की बेटी को मारकर शव को सिंध नदी में फेंक दिया था। उसे अपनी पत्नी और बेटी के चरित्र पर शक था। जून 2012 में अंजाम दिए गए इस दोहरे हत्याकांड के सिलसिले में हुई पूछताछ के दौरान मोहर सिंह ने ये बात कबूल किया था। पुलिस सिंध नदी में शव के अवशेष ढूंढ़ने भी गई, हालांकि वहां कुछ नहीं मिला।
मोहर सिंह को वर्ष 2006 में दतिया जिले में एक अपहरण के एक मामले में पांच साल के लिए जेल भेजा गया था। इस दौरान उसकी पत्नी रामवती, दो बेटियां 15 साल की आरती व नौ साल की पूनम अपने ननिहाल जाकर रहने लगी थीं। पांच साल की जेल काटने के बाद जून 2012 में जब मोहर सिंह बाहर आया तो वह सीधे अपनी ससुराल पहुंचा। यहां उसने शादी की बात कहकर पत्नी और बेटियों को साथ लेकर चला गया। मोहर सिंह करीब पांच-छह दिन तो बेटियों व पत्नी के साथ अपनी बहन मीरा के घर रुका। इसके बाद वह नौ साल की बेटी पूनम को वहां छोड़कर पत्नी रामवती व बड़ी बेटी आरती को साथ लेकर रतनगढ़ के लिए निकला। इसके बाद न तो पत्नी, बेटी का पता लगा और न ही मोहर सिंह का।
शव को पत्थर से बांधकर सिंध नदी में फेंक दिए
मोहर सिंह की सास ने दबोह थाना में बेटी की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस तब से ही मोहर सिंह की तलाश कर रही थी। कुछ दिन बाद उसे श्योपुर के सेसईपुरा थाना पुलिस ने दबोचा। यहां से दतिया पुलिस उसे ट्रांजिट रिमांड पर अपने साथ ले गई। दतिया में पांच दिन की लंबी पूछताछ के दौरान मोहर सिंह ने कुबूल किया कि उसने अपनी पत्नी व बेटी की गोली मारकर हत्या कर दी थी और दोनों के शव को पत्थर से बांधकर रतनगढ़ माता मंदिर के पास सिंध नदी में फेंक दिए थे।
मोहर सिंह का जो दबदबा चंबल में था, वही जेल में भी था। जेल में गर्मी लगती थी तो पंखा लगवा लिया था। एक बार तो जेल के एक बड़े ऑफिसर ने किसी बात पर मना किया तो उसकी बुरी तरीके से पिटाई भी कर दी। यह भी कहा जाता है कि एक बार जेल में मन नहीं लगने पर उसने जेल ऑफिसर का बंगला कब्जा लिया और बड़े आराम से उसमें रहने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि जेल के भीतर जो उसके एश-ओ-आराम में बाधा बनता, उसकी पिटाई हो जाया करती थी।
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अच्छे इंसान हैं अटल बिहारी वाजपेयी
मोहर सिंह राजनेताओं को पसंद नहीं करते। उन्हें कोई भी राजनेता प्रभावित नहीं करता है सिवाय अटल बिहारी बाजपेयी के। मोहर सिंह कहते हैं कि वे एक अच्छे इंसान हैं। उन्होंने कभी बागियों का सहारा नहीं लिया।
जज साहब कितनी रोटी खाए हो
मोहर सिंह ने बताया कि एक मुकदमे के दौरान कोर्ट में जज ने पूछा कि तुमने कितने मर्डर किए हैं। तब मैंने जज साहब से पूछा आपने आज कितनी रोटियां खाईं हैं। जज साहब ने कहा मुझे याद नहीं। तब मैंने कहा कि मुझे भी याद नहीं कि मैंने कितने लोगों को मारा है। हां मेरे ऊपर 400 हत्याओं का आरोप है, लेकिन मैंने यही कोई 20-22 लोगों को ही मारा है। एक बार मैंने सिवाड़ में एक साथ 11 मुखबिरों को मारा था।
मुझे भगवान पर भरोसा था
मोहर सिंह को फांसी की सजा हुई थी, लेकिन फांसी नहीं दी गई। इस बात पर उन्होंने कहा कि मुझे भगवान पर भरोसा था। उनकी मर्जी के बिना एक पत्ता तक नहीं हिलता है। जेल से छूटने के बाद डाकू मोहर सिंह मेहगांव नगर पालिका में निर्विरोध चेयरमैन भी रहे ।
समर्पण के बाद कोई पूछने नहीं आया
मोहर सिंह ने कहा कि समर्पण के बाद आज तक कोई पूछने नहीं आया। उन्होंने जयपुर में आयोजित होने वाले एक कार्यक्रम 'पहले बसाया बीहड़ - अब बचाएंगे बीहड़’ की सराहना करते हुए कहा था कि इससे दस्युओं को समाज से जुड़ने का मौका मिलेगा। मोहर सिंह ने अपने गांव को आदर्श गांव बनाने के लिए सरकार से अपील भी की।
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