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Wednesday, October 26, 2016

मुर्दों का शहर

October 26, 2016 0
Jeetendra Gaur
रहस्यमयी मुर्दों के इस शहर में जो भी गया, वो लौट कर नहीं आया!

पांच पहाड़ों के बीच छिपी ये पहाड़ी पत्थर की बनी छोटी-छोटी सफेद झोपड़ियों से ढकी है, इन झोपड़ीनुमा ढांचों की गिनती करना भी मुश्किल है। इनमें स्थानीय लोगों ने अपने परिजनों के शव दफनाए थे। हम बात कर रहें हैं रूस के उत्तरी ओसेटिया के सुदूर वीरान इलाके में दर्गाव्स गांव की।
मुर्दों का शहर

वो कहते है ना की खूबसूरत दिखने वाली चीज खतरनाक भी हो सकती है, ऐसा ही कुछ इस जगह के साथ भी है। देखने पर मन को मोह लेने वाली ये जगह वैसे तो बहुत खूबसूरत है, लेकिन फिर भी कोई जल्दी से यहां जाने की हिम्मत नहीं करता..और जाएं भी तो कैसे इस 'मुर्दों के शहर' में जहां रहती है तो सिर्फ लाशें।

अनगिनत तहखाना नुमा इमारतें

बाहर से खूबसूरत दिखने वाली इस जगह को ‘सिटी ऑफ द डेड’ यानी ‘मुर्दों का शहर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह जगह पांच ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच छिपी हुई है। यहां पर सफेद पत्थरों से बनी अनगिनत तहखाना नुमा इमारतें है। इनमें से कुछ तो 4 मंजिला ऊंची भी है।

विशाल कब्रिस्तान

हर इमारत की प्रत्येक मंजिल में लोगो के शव दफनाए हुए है। जो इमारत जितनी ऊंची है उसमे उतने ही ज्यादा शव है। इस तरह से हर मकान एक कब्र है और हर कब्र में अनेक लोगो के शव दफनाएं हुए है। ये सभी कब्र तकरीबन 16वीं शताब्दी से संबंधित हैं। यहां तकरीबन 99 इमारतें है। इस तरह से हम कह सकते है की यह जगह 16 वी शताब्दी का एक विशाल कब्रिस्तान है। जहां पर आज भी उस समय से सम्बंधित लोगों के शव दफन है। हर इमारत एक परिवार विशेष से सम्बंधित है जिसमे केवल उसी परिवार के सदस्यों को दफनाया गया है।


क्या कहते हैं स्थानीय लोग


इस जगह को लेकर स्थानीय लोगों की तरह-तरह की मान्यताएं भी हैं। लोगों का मानना है कि पहाड़ियों पर मौजूद इन इमारतों में जाने वाला लौटकर नहीं आता। शायद इसी सोच के चलते, यहां मुश्किल से ही कभी कोई ट्युरिस्ट पहुंचता है। हालांकि, यहां तक पहुंचने का रास्ता भी आसान नहीं है। पहाड़ियों के बीच सकरे रास्तों से होकर यहां तक पहुंचने में तीन घंटे का वक्त लगता है। यहां का मौसम भी सफर में एक बहुत बड़ी रुकावट है।


अजीब दास्तां


यहां के बारे में वैसे तो और भी कई मान्यताएं प्रचलित है, लोगों का मानना है की 18वीं सदी में यहां रहने वाले लोग अपने परिवार के बीमार सदस्यों को इन घरों में रखते थे, उन्हें यहीं पर खाना तथा और जरूरत की चीजें देते थे लेकिन उनको बाहर जाने की इजाजत नहीं दी जाती थी....उनकी मृत्यु होने तक।


कैसा था यहां के लोगों का जीवन


यह जगह रहस्यमयी तो है ही साथ ही रोमांचक भी इसलिए ट्युरिस्ट के अलावा पुरात्तवविदों और वैज्ञानिकों की भी इसमें खास रूची बनी रहती है, ये जानने की यहां पर रहने वाले लोगों का जीवन कैसा था।


पुरातत्वविदों का कहना कुछ और ही हैं
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इस जगह में पुरातत्वविदों की बहुत रूचि रही है और उन्होंने इस जगह को लेकर कुछ असामान्य खोजें भी की हैं। पुरातत्वविदों को यहां कब्रों के पास नावें मिली हैं। उनका कहना है कि यहां शवों को लकड़ी के ढांचे में दफनाया गया था, जिसका आकार नाव के जैसा है। हालांकि, ये अभी रहस्य ही बना हुआ है कि आस-पास नदी मौजूद ना होने के बावजूद यहां तक नाव कैसे पहुंचीं। नाव के पीछे मान्यता ये है कि आत्मा को स्वर्ग तक पहुंचने के लिए नदी पार करनी होती है, इसलिए उसे नाव पर रखकर दफनाया जाता है।


कुएं का रहस्य


यहां पुरातत्वविदों को हर तहखाने के सामने कुआं भी मिला। इन कुओं को लेकर ये कहा जाता है कि अपने परिजनों के शवों को दफनाने के बाद लोग कुएं में सिक्का फेंकते थे। अगर सिक्का तल में मौजूद पत्थरों से टकराता, तो इसका मतलब ये होता था कि आत्मा स्वर्ग तक पहुंच गई।

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